Thursday, December 1, 2011

॥ मन के उपवन में फूल खिले ॥


प्रभु नाम की लगी लगन, तन के आंगन में दीप जले।
जब से तुम आये मोहन, मन के उपवन में फूल खिले॥

नीरस हर पल था जीवन, इक पग चलना भी था दूभर,
काम क्रोध मद लोभ लुटेरे, अनेक जन्म के बैरी मिले।
जब से तुम आये मोहन, मन के उपवन में फूल खिले॥

क्षितिज पर रहती थी नज़र, इंद्रधनुष रूप आते थे नज़र,
अधरों को न मुस्कान मिले, दिल को भी न चैन मिले।
जब से तुम आये मोहन, मन के उपवन में फूल खिले॥

सोचता था कैसे बच पाऊंगा, जग की ठोकरें खाने से,
कभी कोई रास्ता भटकाता, तो कभी कोई राह न मिले।
जब से तुम आये मोहन, मन के उपवन में फूल खिले॥

तपती धूप में जलते पाँव, पता न था कब मिलेगी छाँव,
मैं सपना तुम हो हकीकत, साथ यह अपना सदा चले।
जब से तुम आये मोहन, मन के उपवन में फूल खिले॥

प्रभु नाम की लगी लगन, तन के आंगन में दीप जले।
जब से तुम आये मोहन, मन के उपवन में फूल खिले॥