राधे कृष्ण भज मन,
बावरे काहे पीटे ढोल॥
चर्म चक्षु बन्द कर,
दिव्य नयन को खोल।
नाम अमृत बरस रहा,
न कर प्रभु से मोल॥
छोड़ मोहन के सहारे,
श्वांसो के सुर ताल।
सभी भय दूर होंगे,
मित्र हो जायेगा काल॥
गोविन्द मधु मुस्कान से,
हो जा अब निहाल।
प्रेम पथ अति सुगम है,
रटे जा नित गोपाल॥
नटखट मेरा कान्हा है,
मन मोहक उसके खेल।
हृदय आनन्द मग्न हुआ,
यही कृष्ण का मेल॥
बावरे काहे पीटे ढोल॥
चर्म चक्षु बन्द कर,
दिव्य नयन को खोल।
नाम अमृत बरस रहा,
न कर प्रभु से मोल॥
छोड़ मोहन के सहारे,
श्वांसो के सुर ताल।
सभी भय दूर होंगे,
मित्र हो जायेगा काल॥
गोविन्द मधु मुस्कान से,
हो जा अब निहाल।
प्रेम पथ अति सुगम है,
रटे जा नित गोपाल॥
नटखट मेरा कान्हा है,
मन मोहक उसके खेल।
हृदय आनन्द मग्न हुआ,
यही कृष्ण का मेल॥