क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥
बृज का दुलारा जो दुनियाँ में आ गया,
चढ़ा कर प्रेम का रंग तमाशा दिखा दिया।
इस बालपन के रूप में सभी को भा गया,
एक लहर प्रेम की जो जहाँ को सिखा गया।
ऐसा है मेरे बृज के दुलारे का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥
घुटनों के बल चलना बयाँ करूँ,
मीठी-मीठी बातें मुख से करना बयाँ करूँ।
गोप-गोपीयों के संग में पलना बयाँ करूँ,
गोद में यशोदा के मचलना बयाँ करूँ।
ऐसा है मेरे घुटमन चलैया का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥
पाटी पकड़कर चलने लगे जब गोपाल,
धरती झूमकर हो गयी आनन्द से निहाल।
बासुकी चरण छूने को चले छोड़ के पाताल,
देवता भी हुए मोहित देखकर उनकी चाल।
ऐसा है मेरे नाग के नथैया का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥
मचाने लगे धूम जब गिरधारी नंदलाल,
एक तो खुद और साथ सभी ग्वाल-बाल।
माखन चुराने लगे जब सबके प्यारे गोपाल,
गोपीयाँ छिपाने लगी मटकी कर के देख भाल।
ऐसा है मेरे माखन के चुरैया का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥
अटारी पर चढ माखन की मटकी को ढूँढ़ना,
मटकी दीख जाये तो उसमें हाथों को बोरना।
ऊँची हो तो सखाओं के कंधे चढ़के न छोड़ना,
पहुँचे जब न हाथ तो उसे मुरली से फोड़ना।
ऐसा है मेरे मुरली के बजैया का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥
चोरी करते आ गई कोई गोपी यदि वहाँ,
पकड़ लिया तो बोले छुड़ाकर अपनी वाहँ।
मैं तो तेरे माखन की कर रहा था देखभाल,
खाता नहीं मैं मक्खियाँ रहा था निकाल।
ऐसा है मेरे चित्त के चुरैया का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥
गुस्से में गोपी हाथ को पकड़ती जब आकर,
तब अपना भोलापन दिखातें हैं मुरलीधर।
मोहक रूप देख गुस्सा वहीं जाता है उतर।
तब गोपी लाकर देती माखन कटोरी भर,
ऐसा है मेरे मन-मन्दिर के बसैया का बालपन।
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥
बृज का दुलारा जो दुनियाँ में आ गया,
चढ़ा कर प्रेम का रंग तमाशा दिखा दिया।
इस बालपन के रूप में सभी को भा गया,
एक लहर प्रेम की जो जहाँ को सिखा गया।
ऐसा है मेरे बृज के दुलारे का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥
घुटनों के बल चलना बयाँ करूँ,
मीठी-मीठी बातें मुख से करना बयाँ करूँ।
गोप-गोपीयों के संग में पलना बयाँ करूँ,
गोद में यशोदा के मचलना बयाँ करूँ।
ऐसा है मेरे घुटमन चलैया का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥
पाटी पकड़कर चलने लगे जब गोपाल,
धरती झूमकर हो गयी आनन्द से निहाल।
बासुकी चरण छूने को चले छोड़ के पाताल,
देवता भी हुए मोहित देखकर उनकी चाल।
ऐसा है मेरे नाग के नथैया का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥
मचाने लगे धूम जब गिरधारी नंदलाल,
एक तो खुद और साथ सभी ग्वाल-बाल।
माखन चुराने लगे जब सबके प्यारे गोपाल,
गोपीयाँ छिपाने लगी मटकी कर के देख भाल।
ऐसा है मेरे माखन के चुरैया का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥
अटारी पर चढ माखन की मटकी को ढूँढ़ना,
मटकी दीख जाये तो उसमें हाथों को बोरना।
ऊँची हो तो सखाओं के कंधे चढ़के न छोड़ना,
पहुँचे जब न हाथ तो उसे मुरली से फोड़ना।
ऐसा है मेरे मुरली के बजैया का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥
चोरी करते आ गई कोई गोपी यदि वहाँ,
पकड़ लिया तो बोले छुड़ाकर अपनी वाहँ।
मैं तो तेरे माखन की कर रहा था देखभाल,
खाता नहीं मैं मक्खियाँ रहा था निकाल।
ऐसा है मेरे चित्त के चुरैया का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥
गुस्से में गोपी हाथ को पकड़ती जब आकर,
तब अपना भोलापन दिखातें हैं मुरलीधर।
मोहक रूप देख गुस्सा वहीं जाता है उतर।
तब गोपी लाकर देती माखन कटोरी भर,
ऐसा है मेरे मन-मन्दिर के बसैया का बालपन।
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥