Monday, December 20, 2010

॥ मोहन प्यारे मेरी झोंपड़ी में आये रे ॥


मेरे कन्हैया को माखन मिश्री भाये रे,
नित्य नव नवनीत को भोग लगाये रे।
रोज सुबह-सबेरे प्यारे को मैं जगाऊँ रे,
मोहन प्यारे मेरी झोंपड़ी में आये रे॥

उठो जागो प्यारे मेरे जीवन के आधार,
आँखे खोल देखो ताजा गौ दूध है तैयार।
माखन और मिश्री का भोग मैं लगाऊँ रे,
मोहन प्यारे मेरी झोंपड़ी में आये रे॥

चॉंदी की चौकी पर, भोजन की है तैयारी,
छप्पन भोग और खीर जलेबी है न्यारी।
भोग लगाकर मीठा पान मैं खिलाऊँ रे,
मोहन प्यारे मेरी झोंपड़ी में आये रे॥

बड़े भाव से माखन को खाये है गिरधारी,
सुबह जो खाये, सांझ को न पाये बनवारी।
मुझ से तो वह नित्य नयी प्रीत बढाये रे,
मोहन प्यारे मेरी झोंपड़ी में आये रे॥