Thursday, February 10, 2011

॥ गोविन्द गोपाल गाता चल ॥


गोविन्द गोपाल गाता चल,
कृष्णा से प्रीत बढ़ाता चल।
हम सब राही प्रेम डगर के,
सब पर प्यार लुटाता चल॥

बिना प्रेम के चले न कोई,
बचपन बुढापा या जवानी,
चाहे सुराई नई उम्र की,
चाहे मटकी कोई हो पुरानी।

भक्ति पथ पर चलना तुझको,
मुस्कुरा कर चलता चल,
गोविन्द गोपाल गाता चल,
कृष्णा से प्रीत बढ़ाता चल।

चाँदी की चार दीवारी में,
जहाँ की हर खुशी वीरान है,
जंजीरें सभी कट गईं मगर,
मुक्त हुआ नहीं इन्सान है।

प्यासी है हर इक गागर,
प्रेम गंगा से भरता चल,
गोविन्द गोपाल गाता चल,
कृष्णा से प्रीत बढ़ाता चल॥

संसार नहीं कभी किसी का,
यह न तेरा है न मेरा है,
पराया नहीं कोई जग में,
यह धरती रैन बसेरा है।

सूनी है हर एक गलीयाँ,
पथ पर फूल बिछाता चल,
गोविन्द गोपाल गाता चल,
कृष्णा से प्रीत बढ़ाता चल॥

यह दुनिया केवल है प्रभु की,
हर तट प्रीत की गागर है,
यहाँ हर मन एक मन्दिर है,
हर दिल प्रेम का सागर है।

हर मन्दिर में प्रभु विराजे,
सभी को शीश झुकाता चल।
गोविन्द गोपाल गाता चल,
कृष्णा से प्रीत बढ़ाता चल॥