Friday, March 4, 2011

॥ अब कृष्णा ही तो मेरा है ॥


न यह मेरा है न तेरा है,
यह जग तो रैन बसेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥

जाने कितनी ठोकर खाकर,
मुश्किल से राहें मिलती हैं,
मंज़िल पाकर राही कहता,
यही मुकाम तो मेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥

सागर से ही बूँदें बनकर,
सागर में ही मिल जाती हैं,
बारिश की हर बूँदें कहती,
यह सागर ही तो मेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥

अनेकों रंग अनेकों गंध,
जाने कितने फूल हैं खिलते,
वन की हर पत्ती कहतीं,
यह उपवन ही तो मेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥

मिट्टी का बना हर आदमी,
मिट्टी में मिल जाता है,
भूमि का हर कण कहता,
यह भूमंडल ही तो मेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥

जग की चकाचौंध देखकर,
हर पल ख़ुशी तरसती हैं,
प्रारब्ध का हर पल कहता,
यह वक्त ही तो मेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥