Monday, December 27, 2010

॥ कान्हा अपार है तेरी माया ॥


कान्हा अपार है तेरी माया,
कोई इसका पार न पाया॥

जब ब्रह्मा ने सृष्टि रचकर,
चारों वेद का प्रकाश फैलाया,
चारों मुख जब गये थक,
नेति नेति कह समझाया।

जब शिव ने योग में रहकर,
तेरा समाधि ध्यान लगाया,
मोहिनी रूप दिखाकर तूने,
अपनी लीला से भरमाया।

जब नारद में काम जीत का,
जो अभिमान समाया,
मति भ्रम में ड़ाल के तूने,
बानर रूप में नाच नचाया।

जब दुर्वासा को अपने तप का,
अंहकार मन में आया,
चक्र सुदर्शन के द्वारा तूने,
तीनों लोक में घुमाया।

ज्ञानी ध्यानी योगी देव,
नर असुर में अहं जब आया,
उन सबको माया से तूने,
भवसागर में गोता खिलाया।

प्रेम भाव रटे नाम जो तेरा,
उसे ही तूने भेद बताया,
वही बच पाया इस माया से,
जो तेरी शरण में आया।

कान्हा अपार है तेरी माया,
कोई इस को पार न पाया॥