Sunday, March 20, 2011

॥ जब मैं पिया संग खेली होरी ॥


मच गयी हलचल होरी की,
और चलने लगी पिचकारी।
अबीर गुलाल रंगत टेसू की,
और केसर की महकारी॥

सुध-बुध बिसर गयी तन की,
रसिया ऎसी केसर घोरी।
तन-मन मेरो ऎसो भीगो,
जब मैं पिया संग खेली होरी॥

हिय में मारी ऎसी पिचकारी,
मली मुख कपोलन रोरी।
अलकन लाल पलकन लाल,
तन-मन लाल भयो री॥

प्रेम के रंग में हुई लाल मैं,
ऎसो प्रेम सुधा-रस बोरी।
तन-मन मेरो ऎसो भीगो,
जब मैं पिया संग खेली होरी॥

होरी खेल रहे मनमोहन,
संग में खेल रही प्यारी।
प्रेम रंग में भीगी राधिका,
और भीगे कृष्ण मुरारी॥

प्रिया-प्रीतम के प्रेम में रंग,
जुड़ गयी प्रीत की डोरी।
तन-मन मेरो ऎसो भीगो,
जब मैं पिया संग खेली होरी॥

Friday, March 11, 2011

॥ मनवा गोविन्द के गुण गा ले ॥


छोड़ के सारे बन्धन जग के,
कृष्णा से प्रीत लगा ले।
गोविन्द के गुण गा ले,
मनवा गोपाल के गुण गा ले॥

भुगत लिये सुख-दुख जग के,
सभी अरमान निकाले।
अब भी समय है मूरख वन्दे,
जी भर कर पछता ले॥

यहाँ सभी को मिलते धोखे,
किन-किन से पड़ते पाले॥
गोविन्द के गुण गा ले,
मनवा गोपाल के गुण गा ले॥

जगत के सब आकर्षण नश्वर,
सब हैं तेरे देखे भाले।
भटक रहा अब तक प्यारे,
पग-पग मिले तुझे छाले॥

कर ले भक्ति प्रभु की अब,
कृपा कृष्ण की तू पा ले।
गोविन्द के गुण गा ले,
मनवा गोपाल के गुण गा ले॥

जाने किन-किन पापों से,
कितने ही घट भर डाले।
तोड़ दे घटों को अब तो,
कहीं पड़ न जायें लाले॥

छोड़ के सारे बन्धन जग के,
कृष्णा से प्रीत लगा ले।
गोविन्द के गुण गा ले,
मनवा गोपाल के गुण गा ले॥


Wednesday, March 9, 2011

॥ कृष्णा से दिल लगाकर तो देखो ॥


अंधेरे से निकलकर चांदनी में नहाकर तो देखो।
जिन्दगी क्या है कभी आवरण हटाकर तो देखो॥
कौन है अपना कृष्णा से दिल लगाकर तो देखो॥

उपवन महकता हैं जैसे जीवन भी महक उठेगा।
कन्हैया का नाम दिल से पुकार कर तो देखो॥
कौन है अपना कृष्णा से दिल लगाकर तो देखो॥

कृष्ण सितारा है चमकता रहेगा सदा आँखों में।
दिखलाई देगा ज़रा तन से मन हटाकर तो देखो॥
कौन है अपना कृष्णा से दिल लगाकर तो देखो॥

आँखों के रास्ते किस पल दिल में उतर जायेगा।
सांवरे की छवि को मन में निहार कर तो देखो॥
कौन है अपना कृष्णा से दिल लगाकर तो देखो॥

दीवारों की भी भाषा होती है आवाज भी होती हैं।
अपने मन-मन्दिर की दीवार सजाकर तो देखो॥
कौन है अपना कृष्णा से दिल लगाकर तो देखो॥

दूरियाँ नज़रों की इस जहाँ में सिर्फ़ एक धोखा है।
कान्हा मिलेगा उसकी ओर हाथ बढ़ाकर तो देखो॥
कौन है अपना कृष्णा से दिल लगाकर तो देखो॥

Friday, March 4, 2011

॥ अब कृष्णा ही तो मेरा है ॥


न यह मेरा है न तेरा है,
यह जग तो रैन बसेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥

जाने कितनी ठोकर खाकर,
मुश्किल से राहें मिलती हैं,
मंज़िल पाकर राही कहता,
यही मुकाम तो मेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥

सागर से ही बूँदें बनकर,
सागर में ही मिल जाती हैं,
बारिश की हर बूँदें कहती,
यह सागर ही तो मेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥

अनेकों रंग अनेकों गंध,
जाने कितने फूल हैं खिलते,
वन की हर पत्ती कहतीं,
यह उपवन ही तो मेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥

मिट्टी का बना हर आदमी,
मिट्टी में मिल जाता है,
भूमि का हर कण कहता,
यह भूमंडल ही तो मेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥

जग की चकाचौंध देखकर,
हर पल ख़ुशी तरसती हैं,
प्रारब्ध का हर पल कहता,
यह वक्त ही तो मेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥