Friday, December 31, 2010

॥ ऎसी कृपा कर दो मेरे कान्हा॥


सब कुछ छोड़ भजन करूँ तेरा,
ऎसी कृपा कर दो मेरे कान्हा।
मुझे वेद ज्ञान से क्या है लेना,
प्रेम का पाठ पढ़ा दो मेरे कन्हा॥

जहाँ ऊँच-नीच का भेद न हो,
जाति-पाति की बात न हो,
मंदिर मस्जिद में भेद न हो,
ऎसा प्रेम बरसा दो मेरे कान्हा।
सब कुछ छोड़ भजन करूँ तेरा,
ऎसी कृपा कर दो मेरे कान्हा॥

जहाँ जीवन का श्रृंगार त्याग हो,
जीवन का आधार प्यार हो,
हर जीवन का सार प्रेम हो,
ऎसा अमृत पिला दो मेरे कान्हा।
सब कुछ छोड़ भजन करूँ तेरा,
ऎसी कृपा कर दो मेरे कान्हा॥

जहाँ देखूँ वहाँ तुम ही तुम हो,
जीवन के हर रंग में तुम हो,
तुझमें मैं हूँ, मुझमें तुम हो,
ऎसा प्रेम रंग चढ़ा दो मेरे कान्हा।
सब कुछ छोड़ भजन करूँ तेरा,
ऎसी कृपा कर दो मेरे कान्हा॥

Wednesday, December 29, 2010

॥ बारम्बार प्रणाम है ॥


हे मेरे गोविन्द तोहे बारम्बार प्रणाम है,
हे मेरे गोपाल तोहे आठों याम प्रणाम है।

यशोदा के लाल को बारम्बार प्रणाम है,
नन्द के दुलारे को कोटि बार प्रणाम है।
हे मेरे गोविन्द तोहे आठों याम प्रणाम है,

राधा के श्याम को बारम्बार प्रणाम है,
गोपीयों के कान्हा को कोटि बार प्रणाम है।
हे मेरे कृष्णा तोहे आठों याम प्रणाम है,

ग्वालों के कन्हैया को बारम्बार प्रणाम है,
इन्द्र के गोविन्द को कोटि बार प्रणाम है।
हे मेरे नटवर तोहे आठों याम प्रणाम है,

मीरा के गिरधर को बारम्बार प्रणाम है,
शबरी के राम को कोटि बार प्रणाम है।
हे मेरे चितचोर तोहे आठों याम प्रणाम है,

अर्जुन के सारथी को बारम्बार प्रणाम है,
सुदामा के मित्र को कोटि बार प्रणाम है।
हे मेरे सदगुरु तोहे आठों याम प्रणाम है,

हे मेरे गोविन्द तोहे बारम्बार प्रणाम है,
हे मेरे गोपाल तोहे आठों याम प्रणाम है।

Tuesday, December 28, 2010

॥ केशव कृपा निधान ॥


प्रभु भक्ति के भाव से,
होता धर्म कर्म का ज्ञान।
मेरे मन मन्दिर आन बसे,
केशव कृपा निधान॥

कान्हा प्रेम कि आस है,
यह सत्संग रूपी नाव।
नाम बड़ा इस जगत में,
कृष्ण कृपा की छाँव॥

प्रीत मोहन से जो हो गयी,
अब न रही कोई चाह।
भक्ति-पथ पर जो चल दिया,
उसे गोविन्द दिखाये राह॥

कान्हा मधु मुस्कान से,
हर क्षण प्रेम लुटाय।
सब भय वाधा मिट जाये,
जब सांवरा हो सहाय॥

एक काज कर मन मेरे,
बस श्याम नाम का जाप।
श्याम नाम से मिट सके,
जीवन के सब पाप॥

हाथ जोड़ विनती करूं,
मेरे मनमोहन घनश्याम।
श्वांस-श्वांस में रमा रहे,
हे गिरधर तेरा नाम॥

Monday, December 27, 2010

॥ कान्हा अपार है तेरी माया ॥


कान्हा अपार है तेरी माया,
कोई इसका पार न पाया॥

जब ब्रह्मा ने सृष्टि रचकर,
चारों वेद का प्रकाश फैलाया,
चारों मुख जब गये थक,
नेति नेति कह समझाया।

जब शिव ने योग में रहकर,
तेरा समाधि ध्यान लगाया,
मोहिनी रूप दिखाकर तूने,
अपनी लीला से भरमाया।

जब नारद में काम जीत का,
जो अभिमान समाया,
मति भ्रम में ड़ाल के तूने,
बानर रूप में नाच नचाया।

जब दुर्वासा को अपने तप का,
अंहकार मन में आया,
चक्र सुदर्शन के द्वारा तूने,
तीनों लोक में घुमाया।

ज्ञानी ध्यानी योगी देव,
नर असुर में अहं जब आया,
उन सबको माया से तूने,
भवसागर में गोता खिलाया।

प्रेम भाव रटे नाम जो तेरा,
उसे ही तूने भेद बताया,
वही बच पाया इस माया से,
जो तेरी शरण में आया।

कान्हा अपार है तेरी माया,
कोई इस को पार न पाया॥

Sunday, December 26, 2010

॥ तेरे काँटों से भी प्यार ॥


तेरे काँटों से भी प्यार,
तेरे फूलों से भी प्यार।
जो भी देना चाहो दे दो,
हे जग के पालनहार॥

तेरी धूप से भी प्यार,
तेरी छाँव से भी प्यार।
चाहे धूप से झुलसा दो,
या छाँव की शीतलता दो।
जैसा करना चाहो कर दो,
हे जग के पालनहार॥

तेरे गमों से भी प्यार,
तेरी खुशीयों से भी प्यार।
चाहे गमों की दो बोछार,
या खुशीयों की दो बहार।
जो भी देना चाहो दे दो,
हे जग के पालनहार॥

तेरे विरह से भी प्यार,
तेरे मिलन से भी प्यार।
चाहे विरह की दो प्यास,
या मिलन की दो आस।
जो भी देना चाहो दे दो,
हे जग के पालनहार॥

तेरे चरणों से भी प्यार,
तेरे संसार से भी प्यार।
चाहे पहुँचा दो परली पार,
या छोड़ दो मझधार।
जैसा करना चाहो कर लो,
हे जग के पालनहार॥

Saturday, December 25, 2010

॥ मैं क्या करूँ किसी से कोई अरज ॥


मैं क्या करूँ किसी से कोई अरज,
बन गया मैं प्यारे की चरण रज।

कृष्ण प्रेम की भाषा है यह अजब,
यहाँ कौन है जिसमें है यह समझ।

यह कृष्ण प्रेम है ही इतना गजब,
इसमें कोई नहीं रह पाता सजग।

अब नहीं मेरे हाथों में मेरी समझ,
इस वज़ह से नहीं रहता मैं सजग।

यह मेरे हृदय की तुम से अरजी,
जैसा चाहो समझो यह तेरी मरजी।

Friday, December 24, 2010

॥ मेरी सांवरे से प्रीत हो गई ॥


मेरी सांवरे से प्रीत हो गई,
गोविन्द गोपाल गाने से॥

जीवन मेरा महक उठा,
श्याम चरण रज पाने से,
मन मेरा प्रफुल्लित हुआ,
कृष्ण पराग रस पाने से।
मेरी सांवरे से प्रीत हो गई,
गोविन्द गोपाल गाने से॥

जीवन मेरा पुलकित हुआ,
नटखट की लीला गाने से,
मन मेरा आनन्दित हुआ,
मनमोहन सुधा रस पाने से।
मेरी सांवरे से प्रीत हो गई,
गोविन्द गोपाल गाने से॥

जीवन मेरा परिपूर्ण हुआ,
छलिया के छले जाने से,
मन मेरा भक्तिमय हुआ,
मुरली मनोहर रस पाने से।
मेरी सांवरे से प्रीत हो गई,
गोविन्द गोपाल गाने से॥

जीवन मेरा धन्य हुआ,
कान्हा चरण प्रेम हो जाने से,
मन मेरा अति निर्मल हुआ,
केशव कृपा रस पाने से।
मेरी सांवरे से प्रीत हो गई,
गोविन्द गोपाल गाने से॥

Thursday, December 23, 2010

॥ राधे कृष्ण भज मन बावरे ॥


राधे कृष्ण भज मन,
बावरे काहे पीटे ढोल॥

चर्म चक्षु बन्द कर,
दिव्य नयन को खोल।
नाम अमृत बरस रहा,
न कर प्रभु से मोल॥

छोड़ मोहन के सहारे,
श्वांसो के सुर ताल।
सभी भय दूर होंगे,
मित्र हो जायेगा काल॥

गोविन्द मधु मुस्कान से,
हो जा अब निहाल।
प्रेम पथ अति सुगम है,
रटे जा नित गोपाल॥

नटखट मेरा कान्हा है,
मन मोहक उसके खेल।
हृदय आनन्द मग्न हुआ,
यही कृष्ण का मेल॥

Wednesday, December 22, 2010

॥ प्रभु न मिले प्रेम के बिना ॥


प्रभु न मिले प्रेम के बिना।
चाहे लाख कर लो उपाय॥

प्रभु न मिलें यमुना गंगा में,
चाहे लाख डुबकी लगाय।
प्रेम सरोवर में जो डूबे,
उसे मोहन झलक दिखाय॥

प्रभु न मिलें पर्वत निर्जन में,
चाहे लाख ध्यान लगाय।
प्रेम बाग में जो ड़ोले,
उसके मन गोपाल प्रकटाय॥

प्रभु न मिलें पण्डित ज्ञानी में,
चाहे लाख शास्त्र रटाय।
ढाई आखर प्रेम के पढ़े जो,
उसे गोविन्द कंठ लगाय॥

प्रभु न मिलें किसी मूर्ति में,
चाहे लाख परिक्रमा लगाय।
प्रेम अश्रु जिन नैन झलके,
उन नैनन घनश्याम बस जाय॥

प्रभु न मिले प्रेम के बिना।
चाहे लाख कर लो उपाय॥

Tuesday, December 21, 2010

॥ श्याम नाम की लागी लगन ॥


श्याम नाम की लागी लगन,
नैनों से अश्रु छलकने लगे,
हे मन मोहन घनश्याम तुम,
अविरल मुझे याद आने लगे॥

कब हो गई थी मुझसे,
जाने-अनजाने में जो खता,
बस खुद ही इसी बात को,
समझाने में ज़माने लगे।

जिस पल से खुद को,
तुम्हारी यादों में डूबाने लगा,
पता ही न चला कब,
चाँद और तारे मुस्कराने लगे।

जग में सभी ने मुझको,
रोज का अखबार ही समझा,
पढ़कर इस कदर छोड़ दिया,
और सिर्फ रद्दी समझने लगे।

जज्बातों ने कब मेरे इस,
शीशे के दिल को झकझोड़ दिया,
पता ही न चल सका कब,
शीशा टूटा मैं मुस्कराने लगा।

जब इस सोने के पिंजरे में,
घुटने लगा था मेरा दम,
उसी पल तुम्हारी कृपा के,
सारे नज़ारे याद आने लगे।

जग में वक़्त पर होता नहीं,
कभी कोई अपने करीब,
मुड़कर जो देखा तो तुम ही,
अज़ीज़ नज़र आने लगे।

श्याम नाम की लागी लगन,
नैनों से अश्रु छलकने लगे,
हे मन मोहन घनश्याम तुम,
अविरल मुझे याद आने लगे॥

Monday, December 20, 2010

॥ मोहन प्यारे मेरी झोंपड़ी में आये रे ॥


मेरे कन्हैया को माखन मिश्री भाये रे,
नित्य नव नवनीत को भोग लगाये रे।
रोज सुबह-सबेरे प्यारे को मैं जगाऊँ रे,
मोहन प्यारे मेरी झोंपड़ी में आये रे॥

उठो जागो प्यारे मेरे जीवन के आधार,
आँखे खोल देखो ताजा गौ दूध है तैयार।
माखन और मिश्री का भोग मैं लगाऊँ रे,
मोहन प्यारे मेरी झोंपड़ी में आये रे॥

चॉंदी की चौकी पर, भोजन की है तैयारी,
छप्पन भोग और खीर जलेबी है न्यारी।
भोग लगाकर मीठा पान मैं खिलाऊँ रे,
मोहन प्यारे मेरी झोंपड़ी में आये रे॥

बड़े भाव से माखन को खाये है गिरधारी,
सुबह जो खाये, सांझ को न पाये बनवारी।
मुझ से तो वह नित्य नयी प्रीत बढाये रे,
मोहन प्यारे मेरी झोंपड़ी में आये रे॥

Sunday, December 19, 2010

॥ कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो ॥


कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो,
अपनी मुक्ति का मार्ग बनाते चलो।

काम करते रहो नाम जपते रहो,
पाप करने से हर दम डरते रहो।
नाम धन का खजाना बढ़ाते चलो,
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो॥

लोग कहते है घनश्याम आते नहीं,
शरणागत भाव से हम पुकारते नहीं।
शबरी की तरह प्रतिक्षा करते चलो,
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो॥

लोग कहते है भगवान खाते नहीं,
भक्ति भाव से भोग हम लगाते नहीं।
सुदामा की तरह भरोसा रखते चलो,
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो॥

सुख में प्रभु को कभी भूलो नहीं
दुःख में फ़रियाद कभी करो नहीं,
विषयों से मन को हटाते चलो,
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो॥

दया आवेगी उनको कभी ना कभी,
नाथ देंगे दर्शन हमें कभी ना कभी।
यही विश्वास दिल में जमाते चलो,
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो॥

सुनते आये अनाथों के वह नाथ हैं,
अपने भक्तों के रहते सदा साथ हैं।
प्रभु के भक्तों का संग करते चलो,
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो॥

Saturday, December 18, 2010

॥ कन्हैया का बालपन ॥


क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥

बृज का दुलारा जो दुनियाँ में आ गया,
चढ़ा कर प्रेम का रंग तमाशा दिखा दिया।
इस बालपन के रूप में सभी को भा गया,
एक लहर प्रेम की जो जहाँ को सिखा गया।
ऐसा है मेरे बृज के दुलारे का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥

घुटनों के बल चलना बयाँ करूँ,
मीठी-मीठी बातें मुख से करना बयाँ करूँ।
गोप-गोपीयों के संग में पलना बयाँ करूँ,
गोद में यशोदा के मचलना बयाँ करूँ।
ऐसा है मेरे घुटमन चलैया का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥

पाटी पकड़कर चलने लगे जब गोपाल,
धरती झूमकर हो गयी आनन्द से निहाल।
बासुकी चरण छूने को चले छोड़ के पाताल,
देवता भी हुए मोहित देखकर उनकी चाल।
ऐसा है मेरे नाग के नथैया का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥

मचाने लगे धूम जब गिरधारी नंदलाल,
एक तो खुद और साथ सभी ग्वाल-बाल।
माखन चुराने लगे जब सबके प्यारे गोपाल,
गोपीयाँ छिपाने लगी मटकी कर के देख भाल।
ऐसा है मेरे माखन के चुरैया का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥

अटारी पर चढ माखन की मटकी को ढूँढ़ना,
मटकी दीख जाये तो उसमें हाथों को बोरना।
ऊँची हो तो सखाओं के कंधे चढ़के न छोड़ना,
पहुँचे जब न हाथ तो उसे मुरली से फोड़ना।
ऐसा है मेरे मुरली के बजैया का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥

चोरी करते आ गई कोई गोपी यदि वहाँ,
पकड़ लिया तो बोले छुड़ाकर अपनी वाहँ।
मैं तो तेरे माखन की कर रहा था देखभाल,
खाता नहीं मैं मक्खियाँ रहा था निकाल।
ऐसा है मेरे चित्त के चुरैया का बालपन,
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥

गुस्से में गोपी हाथ को पकड़ती जब आकर,
तब अपना भोलापन दिखातें हैं मुरलीधर।
मोहक रूप देख गुस्सा वहीं जाता है उतर।
तब गोपी लाकर देती माखन कटोरी भर,
ऐसा है मेरे मन-मन्दिर के बसैया का बालपन।
क्या-क्या सुनाऊँ अपने कन्हैया का बालपन॥

Friday, December 17, 2010

॥ कब से भटक रहे हैं हम ॥


कब से भटक रहे हैं हम,
पग-पग की ठोकरे खाते।
कभी यहाँ तो कभी वहाँ,
कहाँ-कहाँ हम पटके जाते॥

न चैन मिला कहीं मन को,
शांति को हम तरस जाते।
आत्मा तड़पती रहती है,
क्या प्यास हम बुझा पाते॥

प्यासी कामनाओं को लेकर,
बार-बार धरती पर ही आते।
कभी यह देह कभी कोई देह,
दुख के भंवर में समा जाते॥

आखिर कब तक यूँ भटकेंगे,
चलो अब अपने घर लौट जायें।
जीवन की शाम ढ़लने न पाये,
समय रहते ही पहुँच जायें॥

Thursday, December 16, 2010

॥ बड़ी लगन से चला ढूँढने ॥


बड़ी लगन से चला ढूँढने,
अपने सुन्दर श्याम को।
मन-मोहक मन-मोहन,
नंद कुँवर घनश्याम को॥

वृन्दावन प्यारा है उनको,
वहीं तो वह रमते हैं।
मन ने कहा अरे बावरे,
हम भी वहीं चलते है॥

न बंशी बजी न गैया दौडीं,
न ही लौटे वनचारी।
न गोपियाँ सज रहीं,
न संवर रही राधिका प्यारी॥

कुँज गलीयों में ढूंढा,
मन्दिर में ढूंढा माखन चोर।
मिल जाये कहीं वह,
छाछ पर नाचता नंद किशोर॥

सुबह से हो गयी शाम,
पर नही मिले घनश्याम।
कुँज वनों में पुकारा,
निधिवन भी छान डाला॥

गैया दिखीं ग्वाले दिखे,
दिखी वो कदम्ब की डाल।
जब खोजा अपने घट में,
बंशी बजाते मिले गोपाल॥

बड़ी लगन से चला ढूँढने,
अपने सुन्दर श्याम को।
मन-मोहक मन-मोहन,
नंद कुँवर घनश्याम को॥