Tuesday, December 21, 2010

॥ श्याम नाम की लागी लगन ॥


श्याम नाम की लागी लगन,
नैनों से अश्रु छलकने लगे,
हे मन मोहन घनश्याम तुम,
अविरल मुझे याद आने लगे॥

कब हो गई थी मुझसे,
जाने-अनजाने में जो खता,
बस खुद ही इसी बात को,
समझाने में ज़माने लगे।

जिस पल से खुद को,
तुम्हारी यादों में डूबाने लगा,
पता ही न चला कब,
चाँद और तारे मुस्कराने लगे।

जग में सभी ने मुझको,
रोज का अखबार ही समझा,
पढ़कर इस कदर छोड़ दिया,
और सिर्फ रद्दी समझने लगे।

जज्बातों ने कब मेरे इस,
शीशे के दिल को झकझोड़ दिया,
पता ही न चल सका कब,
शीशा टूटा मैं मुस्कराने लगा।

जब इस सोने के पिंजरे में,
घुटने लगा था मेरा दम,
उसी पल तुम्हारी कृपा के,
सारे नज़ारे याद आने लगे।

जग में वक़्त पर होता नहीं,
कभी कोई अपने करीब,
मुड़कर जो देखा तो तुम ही,
अज़ीज़ नज़र आने लगे।

श्याम नाम की लागी लगन,
नैनों से अश्रु छलकने लगे,
हे मन मोहन घनश्याम तुम,
अविरल मुझे याद आने लगे॥