Saturday, January 1, 2011

॥ तुम ही तुम हो ॥


प्रभु फरियाद करूँ मैं किससे,
जबकि हर कण में तुम ही तुम हो।
हर प्राणी हर जगह तुम्हारी शक्ति,
हर दिल में तुम ही तुम हो॥

तुम से ही महके मेरा मन आँगन,
तुम से ही झूमें मेरा चितवन।
तुम ही मेरी आत्मा की ज्योति,
जबकि प्रकाश भी तुम ही तुम हो॥

तुम से ही हर छा जाती हैं बहारें,
जबकि फ़िजाओं में तुम ही तुम हो।
हर नजरों में नूर तुम्हारा समाया,
हर नजाकत में तुम ही तुम हो॥

हर वस्तु में तुम्हारा रूप समाया,
तुम से ही यह रंग-बिरंगी छाया।
तुम ही मेरी दिल की हर धड़कन,
जबकि श्वांस भी तुम ही तुम हो॥

तुम से ही हर अमृत बरस रहा,
जबकि हर सुधा तुम ही तुम हो।
हर मन्दिर में छवि छायी तुम्हारी,
हर दिल में सिर्फ़ तुम ही तुम हो॥

हर हृदय में होती चाहत तुम्हारी,
तुम से ही लगती लगन हमारी।
तुम ही मेरी हर प्रार्थना में रहते,
जबकि शब्द भी तुम ही तुम हो॥

तुम से हर श्वांस का साज सजा,
जबकि हर झंकार तुम ही तुम हो।
हर देह तुम्हारी ही सितार बनी,
हर तार गुंजार में तुम ही तुम हो॥

मेरी मन वाणी आत्मा हमारा,
विश्वास दिलाता एहसास तुम्हारा।
तुम ही मेरे दिल के हो दिलबर,
जबकि दिलदार तुम ही तुम हो॥